April 23, 2012

इक भूल थे हम, शूल थे हम...

इक भूल थे हम,
शूल थे हम..
आँधियों की 
धूल थे हम

...देखा हमें, परखा हमें
इक हाथ ने, इक आँख ने..

हमको नयी आवाज़ दी...

... अब जानते हैं हम
- सहमते से हुए फिर भी -
...कि शायद
इस दहकती धुप में
खिलते हुए कुछ फूल हैं हम...

April 6, 2012

क्या भूलूँ, क्या याद करूं...



adios!.. to one of the most soft, gentle, lovable, sensitive (and thus, "tortured") souls, I met...
... and to whom I owe so much in this journey, as I continue to traverse through it ...

March 29, 2012

चलते चलते, जलते जलते...


चलते चलते, जलते जलते...
उन्माद लिए, इक प्यास लिए
बुझती आसों की राख लिए -
...जैसा सदियों से होता है,
ये आग कभी बुझ जायेगी,
रह जायेंगे कुछ अंगारे
औ' इक छोटी सी चिंगारी -
शायद इक दिन वो सोचेंगे
क्या इसी लिए था जन्म लिया?...
- Jamshedpur (March 29, '12)

आश्रय...

March 11, 2012

क्षण भर जीवन - मेरा परिचय...

...बस एक बार पूछा जाता,
यदि अमृत से पड़ता पाला,
यदि पात्र हलाहल का बनता,
बस एक बार जाता ढाला,

चिर जीवन औ' चिर मृत्यु जहां,
लघु जीवन की चिर प्यास कहाँ,
जो फिर-फिर होठों तक जाता,
वह तो बस मदिरा का प्याला,

मेरा घर है अरमानों से,
परिपूर्ण जगत का मदिरालय,

मिटटी का तन, मस्ती का मन,
क्षण भर जीवन - मेरा परिचय...

- हरिवंश राय बच्चन

March 8, 2012

कभी लगता है कि अंगारा कोई बाकी है,

कभी लगता है कि अंगारा कोई बाकी है,
क्या पता एक दिन कमबख्त जला देगा मुझको...


और फिर ज़हन के तहखाने से
मेरा माज़ी कभी फिर दूर बुला लेगा मुझको..

मैं महज़ शाख से गिरता हुआ इक पत्ता हूँ
एक झोंका कभी शायद उठा लेगा मुझको...

February 15, 2012

एक खिड़की खुली रह जाती है..


जब भी पड़ाव से निकले, आगे चले
कुछ किताबें बंद करीं,
कुछ परिंदों को पिंजरे से आज़ाद किया,
दरवाज़े की सांकल पर ताला भी लगाया,
... पर एक खिड़की खुली रह जाती है..

और कुछ हमसफ़र मुसाफिर थे
जो आये इस घर में... चले गए
उनकी यादों को नीम की पत्तियों में बाँध कर
सोचा था - चलो ऐसा भी होता है
... पर एक खिड़की खुली रह जाती है..

अजब सा कारवां है ये
अजब सा मैं मुसाफिर हूँ
जो काँधे पर लिए ये कुटिया भटकता, ढूंढता हूँ
बांधता हूँ, कैद करता हूँ सभी खोये हुए लम्हे
... पर एक खिड़की खुली रह जाती है..

December 26, 2011

इस जहाँ से आगे, इक जहाँ और भी है...


इस जहाँ से आगे, इक जहाँ और भी है,
दिल मानता है, इक अस्मां और भी है..
http://abhijat-creation.blogspot.com/2011/09/is-jahan-se-aage-ek-jahaan-aur-bhi-hai.html

There's enough in the world for everyone's needs...

December 25, 2011

I was a man recounting stories, living out "as ifs"....

I was a man
recounting stories
living out 'as ifs'
...creating,
encountering
exploring, experimenting with...

the possibilities within
the options without...

Travelling through
the labyrinths of my own creation,
...somewhere on the way,
I stumbled across
this Truth within:
...that!

I do not find myself
in the stories I recount,
the options I create
the possibilities I perceive...

but
discovering myself
is an unending pilgrimage
of becoming aware
of the processes..
...which create my illusions,
my make-believe identities
- and my random stories...

-May 6th, '87

मेरी मिट्टी चुरा के ले गयी ये एक नदी...

मेरी मिट्टी चुरा के ले गयी ये एक नदी
आसमां चुप रहा, कगार ढलती गयी...

December 9, 2011

बादल से फूलों तक, टहनी के झूलों तक...


बादल से फूलों तक, टहनी के झूलों तक,
ठहर गयीं दो पल को, ढूंढती धरातल को,
भीगी कुछ पंखुड़ियाँ, सपनों की कुछ लड़ियाँ,
कुछ पल लहरायेंगी, कल तक गिर जायेंगी,
कुछ आधी, कुछ पूरी... पानी की बूँदें...

ढाबे की चाय...

December 5, 2011

कारवां गुज़र गया... गुबार देखते रहे...

पात-पात झर गयी, कि शाख-शाख जल गयी,
चाह तो निकल सकी ना!.. पर उमर निकल गयी...

September 18, 2011

कभी तूफां किनारा था, कभी साहिल ही तूफां था...


कभी तूफां किनारा था, कभी साहिल ही तूफां था,
किनारों औ' भंवर के बीच में हम ढूंढते सन्दर्भ अपना ..अर्थ अपना
जो कहीं पर खो गया था,
पनपता था सार्थ से
मासूम सा वो एक सपना...

June 1, 2011

..blessed are those, who travel by flights...


...and those on the ground, keep counting their "blessings"...

glimpse of a secular country..


I had taken this photograph right outside the gate of the Maha Bodhi Temple, Bodh Gaya....