April 29, 2011

...और जब ख़त्म हुई एक दास्ताँ अपनी



...और जब ख़त्म हुई एक दास्ताँ अपनी,
वहीँ से राह कई निकली थीं,
भटकते से कहाँ पे आ पहुंचे,
जैसे मंजिल ने आ के थाम लिया |

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