December 17, 2010

राही के लिए लेकिन, ये ही मंज़िल होगी...

वख्त का दायरा बिखर रहा हो,
एक ख्वाब मुरझाये
दूसरा खिलता-सा हो
सिमट-सिमट लहरों से,
सूरज बहने को हो...



दूर से आवाज़ एक,
मुझको बुला लेगी
शबनम की बूँदें फिर
बिखर, बिखर जायेंगी

हवा में उदासी भी
फूलों में किलकारी,
धुंधले से रस्ते पर
पैर के निशां होंगे

मौत-मौत!... गूँज उठेगा सारी बगिया में
राही के लिए लेकिन,
ये ही मंज़िल होगी...

- 15th Sept, 1972

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